पथ के साथी

Tuesday, October 27, 2015

साँसों की माला



अनिता मण्डा
1
श्याम लिये बंसी हाथ,रास करे गोपी साथ
नाच भी तो नाथ संग,कितना निराला है।
हिय धरि प्रेम पीर,आँखों में भरा है नीर
मीरा को भी मिलता जो ,जहर का प्याला है।
काली घटा घनघोर ,छाया तम चारों
भीतर की जोत जला,तब उजियाला है।
किसी से न लेना-देना,यहीं सब छोड़ देना
तेरे ही तो हाथों मेरी,साँसों की ये माला है।
2
कण कण पावन है, अति मन भावन है
शीश ऊँचा किये हुए, पर्वत हिमाला है
मौसम कई मिलते, फूल हैं कई खिलते
मनोहारी मेरा देश, कितना निराला है.
शहीदों को है नमन, खून से सींचा चमन
उनके ही दम से तो देश में उजाला  है
आदर सेवा सत्कार, सबके लिए उदार
शील संस्कारों सजी यह पाठशाला है
-0-

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचनाऎँ.... अनीता मण्डा जी बधाई।

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  2. मेरी घनाक्षरी छंद रचनाओं को यहां स्थान व स्नेह
    देने हेतु हृदय से आभारी हूँ।

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  3. सभी मन भावन , लाजवाब रचनाएं हैं
    बधाई .

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  4. सुन्दर कवितायें , अनिता जी शुभकामनायें!!

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  5. बहुत सुंदर रचनाएँ। बधाई।

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  6. अति मोहक सृजन घनाक्षरी!! बधाई

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  7. अति मोहक सृजन घनाक्षरी!! बधाई

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  8. अनिता जी, भक्ति रस की आपकी घनाक्षरी आपके मन के सुन्दर भाव दर्शा रही है | अंत में आपने जो साँसों की माला से इसे अंत किया है बहुत सुन्दर है | दूसरी रचना भी अच्छी है | मेरी ओर से आप को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |

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  9. Sundar rachna

    badhai evam shubhkamna

    Dr. Kavita. Bhatt

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  10. bahut Sundar rachna bade hi pyare bhavo ke saath...........manmohak...

    badhai evam shubhkamna! anita ji !

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  11. अनीता जी, बहुत मनोहारी रचनाएँ हैं...| मेरी बधाई स्वीकारें...|

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  12. वाह ..वाह ...उत्तम भाव भरी सुन्दर रचनाएँ ..बहुत बधाई अनिता जी !

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