पथ के साथी

Thursday, February 5, 2015

अधूरी प्यास

सुनीता अग्रवाल ( नेह)

1 - सूरज का इन्तजार
जम गयी है
डल  झील
अब
नहीं चलते शिकारे
हसीं ख़्वाबों के
इन आँखों को है
सूरज का इन्तजार
-0-
2 -उगा सूरज

लो
उगा सूरज
फ़ैल गया उजियारा
कुछ बड़े -बड़े
बंद झरोखे वाले घर
सर उठाये खड़े है
प्रतीक्षित
आज भी ।
-0-
3-मेरे मन

जाओ
खोल दी मुट्ठी
उड़ो
अब
तुम्हारे हौसलों पर निर्भर है
बनोगे तितली
या
छुओगे गगन
मेरे मन ।
-0-
4- टूटता तारा

हटात्  चमकती
भुकभुकाती लौ
टूटता तारा
कौतूहलवश
इन्हें देखना और खुश होना
और बात होती है
इस अवस्था को  जीना
 जिन्दगी नासूर बना देती है
-0-
5–अधूरी प्यास
जरूरी है
रहे कुछ प्यास अधूरी
पूर्णमासी
है आहट
अमावस्या की
-0-
6- आँधियो की अदा

अजब निराली
आँधियों की अदा
उड़ा ले जाती
धूल पुरानी
धर देती नई
-0-



 ( रेखांकन : रमेश गौतम, इन चित्रों का कॉपी राइट सुरक्षित है । रमेश गौतम जी की अनुमति के बिना इनका उपयोग नहीं किया जा सकता  है। )

10 comments:

  1. Khsnika ke mere is pratham prayas ko prakashit kr mera utsah badhane ke.liye kamboj bhaiya ji ka tahedil se aabhar :)

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  2. सभी क्षणिकाएँ सुन्दर हैं ! बंद झरोखों वाले बड़े घरों के अँधेरे कैसे दूर हों भला ...बहुत सुन्दर ,सटीक !

    हार्दिक बधाई !!

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  3. उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार ज्योति कलश जी सविता जी :)

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  4. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ हैं...बधाई...|

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  5. लो
    उगा सूरज
    फ़ैल गया उजियारा
    कुछ बड़े -बड़े
    बंद झरोखे वाले घर
    सर उठाये खड़े है
    प्रतीक्षित
    आज भी ।
    -0- sunder ,saarthak v sateek .... mana pratham prayaas, par... bahut khaas ,,, ,isi tarah likhti rahiye . himanshu ji ki prerna
    ki dhaaraye aviral ,nirantar bahatee rahe .badhai.

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